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पेड़ पर सौ फीट ऊंचाई पर तीन दिन तक बैठा रहा पंडो युवक, प्रशासन की लापरवाही से उठे सवाल

by Admin on 2025-04-19 04:28:31

पेड़ पर सौ फीट ऊंचाई पर तीन दिन तक बैठा रहा पंडो युवक, प्रशासन की लापरवाही से उठे सवाल

Cp sahu 

सूरजपुर, 19 अप्रैल 2025 : छत्तीसगढ़ के सूरजपुर जिले के प्रेमनगर नगर पंचायत के वार्ड क्रमांक 15 के जंगलनुमा इलाके में एक हृदयविदारक और अजीबोगरीब घटना ने स्थानीय लोगों और प्रशासन को झकझोर कर रख दिया। एक मानसिक रूप से अस्वस्थ पंडो जनजाति के युवक, जय राम पंडो (35 वर्ष), ने तीन दिनों तक एक सरई पेड़ की 100 फीट ऊंचाई पर बैठकर न केवल अपने परिवार, बल्कि पूरे समुदाय को चिंता में डाल दिया। आखिरकार, शुक्रवार को वह स्वयं पेड़ से नीचे उतर आया, जिसके बाद स्वजनों और स्थानीय लोगों ने राहत की सांस ली। लेकिन इस घटना ने प्रशासन की जवाबदेही और संवेदनशीलता पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं।


 घटना का पूरा विवरण

जय राम पंडो, जो प्रेमनगर के ब्रईहाडांड क्षेत्र का निवासी है, मानसिक रूप से अस्वस्थ है। उसके परिवार वाले उसका इलाज झाड़-फूंक और अन्य पारंपरिक तरीकों से करा रहे थे। बताया गया कि पांच दिन पहले, 13-14 अप्रैल को जय राम बिना सूचना के जंगल की ओर चला गया था। स्वजनों ने उसे खोजकर वापस लाया, लेकिन 15 अप्रैल को वह शौच के बहाने घर से निकला और फिर लौटा नहीं। परिवार वालों ने उसकी तलाश शुरू की, तो पाया कि वह घर से कुछ दूरी पर जंगल में एक सरई पेड़ की 100 फीट ऊंचाई पर चढ़कर बैठा है।

स्वजनों ने उसे नीचे उतारने की हरसंभव कोशिश की, लेकिन जय राम न तो कोई जवाब दे रहा था और न ही नीचे उतरने को तैयार था। रात होने पर परिवार वाले पेड़ के नीचे ही सोने को मजबूर हुए। अगले दिन, 16 अप्रैल को नगर पंचायत अध्यक्ष सुखमनिया जगते ने घटना की जानकारी एसडीएम रामानुजनगर को दी। लेकिन प्रशासन ने इस सूचना को गंभीरता से नहीं लिया। 17 अप्रैल को डीडीआरएफ (डिस्ट्रिक्ट डिजास्टर रेस्पॉन्स फोर्स) की रेस्क्यू टीम मौके पर पहुंची और जय राम को उतारने का प्रयास किया, लेकिन वह असफल रहा। इस दौरान स्थानीय लोगों की भीड़ जमा हो गई, और घटना चर्चा का विषय बन गई।




 पारंपरिक उपाय और अंतिम सफलता

जब प्रशासनिक प्रयास नाकाम रहे, तो स्थानीय ग्रामीणों ने पारंपरिक उपायों का सहारा लिया। उन्होंने बैगा पुजारियों को बुलाकर पूजा-पाठ और झाड़-फूंक कराई, यह मानते हुए कि जय राम पर किसी आध्यात्मिक या मानसिक बाधा का प्रभाव हो सकता है। इस बीच, जय राम दो दिनों तक भूखा-प्यासा पेड़ पर ही रहा। आखिरकार, 18 अप्रैल को दोपहर करीब 1 बजे, वह स्वयं पेड़ से नीचे उतर आया। नीचे उतरने के बाद उसने बताया कि झाड़-फूंक से उसे उतरने की ताकत मिली। उसे सुरक्षित देखकर स्वजनों, रेस्क्यू टीम और प्रशासनिक अधिकारियों ने राहत की सांस ली।




मानवीय संवेदना और प्रशासन की लापरवाही

यह घटना केवल एक व्यक्ति की मानसिक अस्वस्थता की कहानी नहीं है, बल्कि यह समाज और प्रशासन के सामने कई सवाल खड़े करती है। जय राम का परिवार, जो आर्थिक और सामाजिक रूप से कमजोर पंडो जनजाति से ताल्लुक रखता है, दो रातों तक ठंडी जमीन पर पेड़ के नीचे सोने को मजबूर रहा। उनके पास न तो संसाधन थे और न ही कोई तत्काल मदद। दूसरी ओर, प्रशासन की सुस्ती इस घटना में सबसे बड़ा सवालिया निशान है। सूचना मिलने के बावजूद प्रशासन ने पहले इसे हल्के में लिया, और जब रेस्क्यू टीम पहुंची, तब तक जय राम दो दिन भूखा-प्यासा पेड़ पर बैठा रहा।

स्थानीय लोगों का कहना है कि अगर जय राम के साथ कोई अनहोनी हो जाती, तो इसके लिए कौन जिम्मेदार होता? पंडो जनजाति, जो संरक्षित जनजाति के अंतर्गत आती है, के प्रति प्रशासन की यह उदासीनता क्या उनके जीवन की कीमत को कम आंकने का सबूत नहीं है? यह भी सवाल उठता है कि मानसिक स्वास्थ्य जैसी गंभीर समस्या से जूझ रहे लोगों के लिए जिले में क्या व्यवस्थाएं हैं? क्या जय राम जैसे लोगों को समय पर चिकित्सीय सहायता मिल पाती है?


आगे की राह

फिलहाल, प्रशासन ने जय राम की मानसिक स्थिति और इस घटना के कारणों की जांच शुरू कर दी है। लेकिन यह पर्याप्त नहीं है। इस घटना ने मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की कमी, ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता की आवश्यकता, और प्रशासन की त्वरित प्रतिक्रिया की जरूरत को उजागर किया है। जय राम के परिवार को न केवल आर्थिक और चिकित्सीय सहायता की जरूरत है, बल्कि सामुदायिक समर्थन और संवेदनशीलता की भी आवश्यकता है।

जय राम पंडो की यह कहानी एक चमत्कारिक अंत के साथ समाप्त हुई, लेकिन यह समाज और प्रशासन के लिए एक सबक है। मानसिक स्वास्थ्य, सामाजिक समावेशन, और प्रशासनिक जवाबदेही जैसे मुद्दों पर गंभीरता से काम करने की जरूरत है। यह घटना हमें याद दिलाती है कि हर जीवन मूल्यवान है, और इसे बचाने के लिए समय पर कदम उठाना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है।

प्रशासन से अपील: इस घटना की गहन जांच हो, और भविष्य में ऐसी लापरवाही न हो, इसके लिए ठोस कदम उठाए जाएं। साथ ही, ग्रामीण क्षेत्रों में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करने के लिए विशेष प्रयास किए जाएं।


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