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2025-04-28 04:27:27
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2025-04-28 04:44:10
चन्द्र प्रकाश
सुरजपुर। 28 अप्रैल 2025। सूरजपुर जिला पंचायत के डाटा सेंटर में 24 अप्रैल 2025 को हुई आगजनी की घटना ने प्रशासनिक लापरवाही और पारदर्शिता के अभाव को उजागर किया है। जिला पंचायत द्वारा जारी खंडन में आगजनी को तापाधिक्य के कारण शॉर्ट सर्किट का परिणाम बताया गया, और साजिश के आरोपों को निराधार करार दिया गया। लेकिन यह खंडन जनता के सवालों का जवाब देने में पूरी तरह विफल रहा। इसके साथ ही, शिक्षा विभाग में राजीव गांधी शिक्षा मिशन समन्वयक शशि कांत सिंह के खिलाफ गंभीर अनियमितताओं और प्रेमनगर बीआरसी कार्यालय में किताबों को कबाड़ करने जैसे घोटालों पर प्रशासन की चुप्पी ने संदेह को और गहरा दिया है। यह आलेख जिला पंचायत की नाकामी और भ्रष्टाचार के दलदल को तीखे शब्दों में उजागर करता है, जो जनता के विश्वास को ठेस पहुंचा रहा है।
सीईओ की चुप्पी: जवाबदेही से पलायन
जिला पंचायत की मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) नंदनी कमलेश आगजनी की घटना के बाद से मीडिया के सामने क्यों नहीं आईं? एक लोक सेवक के रूप में उनकी जिम्मेदारी है कि वे जनता को सत्य और पारदर्शी जानकारी दें। लेकिन उनकी चुप्पी और मीडिया से दूरी यह संकेत देती है कि प्रशासन कुछ छिपाने की कोशिश कर रहा है। यदि आगजनी वास्तव में तकनीकी खराबी का परिणाम थी, तो सीईओ को तुरंत सामने आकर तथ्य प्रस्तुत करने चाहिए थे। उनकी यह खामोशी साजिश के आरोपों को और बल देती है। क्या वे दोषियों को संरक्षण देने में व्यस्त हैं, या उनकी अक्षमता ने जिला पंचायत को भ्रष्टाचार का अड्डा बना दिया है?
सीसीटीवी फुटेज का रहस्य: पारदर्शिता का अभाव
जिला पंचायत कार्यालय जैसे महत्वपूर्ण स्थान पर सीसीटीवी कैमरे होना अनिवार्य है। यदि आगजनी की घटना आकस्मिक थी, तो सीसीटीवी फुटेज को सार्वजनिक क्यों नहीं किया गया? फुटेज से घटना के कारणों और परिस्थितियों को स्पष्ट करना जांच की विश्वसनीयता को बढ़ाता। लेकिन फुटेज को छिपाने या उसका जिक्र तक न करने से यह आशंका पुख्ता होती है कि प्रशासन तथ्यों को दबाने का प्रयास कर रहा है। क्या सीसीटीवी कैमरे कार्यरत थे? यदि हां, तो फुटेज कहां है? और यदि नहीं, तो यह प्रशासनिक लापरवाही का एक और घिनौना उदाहरण है।
रामानुजनगर बीईओ पं. भारद्वाज: अनियमितताओं का सिलसिला
रामानुजनगर के ब्लॉक एजुकेशन ऑफिसर (बीईओ) पं.भारद्वाज के खिलाफ सीएम जतन योजना में अनियमितताओं की शिकायतें पहले भी सामने आ चुकी हैं। शिक्षा समिति और जनपद सदस्यों की शिकायतों पर सरगुजा आयुक्त के निर्देशानुसार जांच शुरू की गई थी। लेकिन इस जांच के निष्कर्ष आज तक सार्वजनिक क्यों नहीं किए गए? यदि कोई अनियमितता नहीं पाई गई, तो इसे स्पष्ट करने में देरी क्यों? और यदि अनियमितताएं पाई गईं, तो बीईओ के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं हुई? वर्तमान में, बीईओ पर स्कूलों में नेताओं के फोटोयुक्त प्लाईवुड सप्लाई का गंभीर आरोप है। यह प्रशासनिक लापरवाही और भ्रष्टाचार का स्पष्ट उदाहरण है। लेकिन जिला पंचायत की ओर से कोई स्पष्टीकरण या कार्रवाई सामने नहीं आई। आखिर सीईओ इस मामले में चुप क्यों हैं? क्या यह दोषियों को संरक्षण देने की साजिश का हिस्सा है?
रीपा योजना में घोटाला: जांच की विफलता
प्रेमनगर में रीपा योजना के तहत भवन निर्माण में हुई अनियमितताओं का मामला भी सुर्खियों में रहा। इस घोटाले में जिला पंचायत की भूमिका पर सवाल उठे, लेकिन तत्कालीन सीईओ निलेश सोनी को दोषी ठहराने या उनके खिलाफ अपराध दर्ज करने का कोई कदम क्यों नहीं उठाया गया? जांच दल ने इस मामले में पांच माह का समय लिया, जो जांच की गंभीरता और दक्षता पर सवाल उठाता है। यदि जांच में गलतियां पाई गईं, तो जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई क्यों नहीं हुई? यह लंबी अवधि और जांच की नाकामी यह संकेत देती है कि प्रशासन दोषियों को बचाने में जुटा है।
अग्नि सुरक्षा व्यवस्था: दावे खोखले
जिला पंचायत के खंडन में दावा किया गया कि कार्यालय में पर्याप्त फायर एक्सटिंग्विशर उपलब्ध थे और आग को समय पर नियंत्रित किया गया। लेकिन यदि अग्नि सुरक्षा व्यवस्था इतनी प्रभावी थी, तो आगजनी को पूरी तरह रोका क्यों नहीं गया? क्या फायर एक्सटिंग्विशर नियमित रूप से मेंटेन किए गए थे? क्या कर्मचारियों को इनके उपयोग का प्रशिक्षण दिया गया था? इन सवालों का जवाब खंडन में नहीं है, जो प्रशासन की तैयारियों पर गंभीर संदेह पैदा करता है।
शशि कांत सिंह को क्लीन चिट: जांच का मजाक
राजीव गांधी शिक्षा मिशन के समन्वयक शशि कांत सिंह के खिलाफ कई तथ्यात्मक शिकायतें दर्ज की गई थीं, जिनमें उनकी संलिप्तता प्रथम दृष्टया स्पष्ट थी। शिक्षा विभाग की सभी फाइलों पर उनके दस्तखत के बिना कोई कार्य संभव नहीं, फिर भी उनकी जवाबदेही तय करने के बजाय, डीएमसी के बयानों के आधार पर उन्हें क्लीन चिट दे दी गई। यह कैसी जांच है, जहां बिना गहन पड़ताल के दोषी को बरी कर दिया जाता है? क्लीन चिट का मतलब होता है कि सभी आरोपों की निष्पक्ष जांच के बाद व्यक्ति निर्दोष साबित हो। लेकिन यहां तो जांच का नामोनिशान तक नहीं! यह घोर लापरवाही और भ्रष्टाचार को संरक्षण देने की साजिश का स्पष्ट प्रमाण है। क्या जिला पंचायत का शिक्षा विभाग इतना कमजोर है कि वह अपने ही अधिकारियों को जवाबदेह नहीं ठहरा सकता?
प्रेमनगर बीआरसी में घोटाला: किताबें कबाड़, स्मार्ट क्लास लूट
हमर उत्थान सेवा समिति ने हाल ही में प्रेमनगर बीआरसी कार्यालय में किताबों को कबाड़ करने और स्मार्ट क्लास परियोजना में अनियमितताओं की शिकायत की थी। ये शिकायतें समाचार पत्रों में सुर्खियां बनीं, लेकिन जिला पंचायत ने न तो कोई बयान जारी किया, न ही जांच दल गठित करने की सूचना दी। किताबें, जो बच्चों के भविष्य का आधार हैं, उन्हें कबाड़ में बेचना शिक्षा के प्रति घोर अपमान है। स्मार्ट क्लास, जो आधुनिक शिक्षा का वादा था, वह भ्रष्टाचार का अड्डा बन गया। शिक्षा विभाग के नोडल अधिकारी और सीईओ की इस मामले में चुप्पी क्या दर्शाती है? क्या वे इन घोटालों से अनजान हैं, या जानबूझकर दोषियों को बचा रहे हैं? यह निष्क्रियता जनता के साथ विश्वासघात है।
प्रशासन की जवाबदेही का पतन
उपरोक्त सभी बिंदु एक ही सच्चाई को उजागर करते हैं —सूरजपुर जिला पंचायत प्रशासन अपनी जवाबदेही और पारदर्शिता में पूरी तरह विफल रहा है। आगजनी की घटना, बीईओ पं. भारद्वाज और शशि कांत सिंह के खिलाफ अनियमितताओं के आरोप, रीपा योजना में घोटाले, प्रेमनगर बीआरसी में किताबों की लूट, और जांच प्रक्रियाओं में देरी यह साबित करते हैं कि प्रशासन जनता के प्रति अपनी जिम्मेदारी को गंभीरता से नहीं ले रहा। एक लोक सेवक का कर्तव्य है कि वह जनता के सवालों का जवाब दे और अपनी कार्यप्रणाली को पारदर्शी बनाए। लेकिन सूरजपुर जिला पंचायत बार-बार चुप्पी और अस्पष्टता का सहारा ले रहा है।