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प्रेमनगर में पशु तस्करी का काला कारोबार: पुलिस की कथित मिलीभगत से ग्रामीणों में आक्रोश

by Admin on 2025-04-28 12:55:42

प्रेमनगर में पशु तस्करी का काला कारोबार: पुलिस की कथित मिलीभगत से ग्रामीणों में आक्रोश

Cp Sahu 

सूरजपुर, 28 अप्रैल 2025: छत्तीसगढ़ के सूरजपुर जिले के प्रेमनगर और रामानुजनगर क्षेत्रों में पशु तस्करी का काला कारोबार बेरोकटोक फल-फूल रहा है। रात के अंधेरे में, तस्कर बैल, भैंस को ग्रामीणों, नाबालिक युवकों से हकवा कर, डंडे, रॉड से क्रूरता पूर्वक हांक कर कोरबा जिले, कोरिया जिले में पहुंचा रहे जिन्हें ट्रकों में ठूंसकर मध्य प्रदेश के कटनी और अन्य बूचड़खानों की ओर ले जा रहे हैं। ग्रामीणों का आरोप है कि पुलिस की कथित मिलीभगत के कारण यह गोरखधंधा बेखौफ चल रहा है, जिससे उनकी आजीविका और आस्था पर गहरा आघात हो रहा है।


 बेजुबानों की चीखें, तस्करों की बेरहमी


प्रेमनगर के घने जंगलों में हर रात एक त्रासदी घट रही है। मवेशी, जो ग्रामीणों की आर्थिक और सांस्कृतिक रीढ़ हैं, तस्करों के क्रूर हाथों में दम तोड़ रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक, नवापारा कला के राजकछार और ग्राम बकिरमा, प्रेमनगर नगर पंचायत ब्रईहा डांड के कुछ लोग इस संगठित धंधे में शामिल हैं। मवेशियों को स्थानीय स्तर पर चोरी कर या सस्ते दामों पर खरीदकर कोरिया, कोरबा, और मध्य प्रदेश के बूचड़खानों तक पहुंचाया जा रहा है। ग्रामीणों का कहना है कि यह तस्करी वर्षों से चल रही है, लेकिन हाल के वर्षों में यह और संगठित हो गई है।


- पुलिस पर गंभीर आरोप


ग्रामीणों का कहना है कि तस्करी की जानकारी पुलिस को दी जाती है, लेकिन कार्रवाई नहीं होती। एक किसान ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, "हमारी गायें हमारी मां जैसी हैं। तस्कर इन्हें चुराकर ले जाते हैं, और पुलिस को शिकायत करने पर भी कोई सुनवाई नहीं होती। रात में तस्करों की गाड़ियां बिना चेकिंग के निकल जाती हैं।" ग्रामीणों का आरोप है कि कुछ पुलिसकर्मी तस्करों से मोटा कमीशन लेकर उनकी मदद करते हैं, जिससे यह धंधा बेरोकटोक चल रहा है।


आर्थिक और सांस्कृतिक नुकसान


मवेशी ग्रामीणों के लिए केवल पशु नहीं, बल्कि उनकी आजीविका और आस्था का प्रतीक हैं। खेती में बैलों का योगदान और गायों का धार्मिक महत्व स्थानीय संस्कृति की रीढ़ है। तस्करी के कारण न केवल आर्थिक नुकसान हो रहा है, बल्कि ग्रामीणों की भावनाओं को भी ठेस पहुंच रही है। एक बुजुर्ग ने कहा, "हमारी गायों को बूचड़खाने भेजा जा रहा है, और हम असहाय हैं। यह अपमानजनक है।"


- संगठित अपराध का जाल


पशु तस्करी अब एक संगठित नेटवर्क बन चुका है, जिसमें लाखों रुपये का लेन-देन होता है। तस्करों का जाल सूरजपुर से कोरिया, कोरबा, और मध्य प्रदेश तक फैला है। प्रेमनगर के सीमावर्ती क्षेत्रों से मवेशियों को कोठी खर्रा (कोरबा) और फिर मध्य प्रदेश ले जाया जा रहा है। इस नेटवर्क की ताकत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यह कथित तौर पर प्रशासन और पुलिस को मैनेज कर लेता है।


कानून का पालन अधर में


छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में पशु तस्करी और गोवध के खिलाफ सख्त कानून हैं, जैसे *छत्तीसगढ़ कृषि पशु संरक्षण अधिनियम, 2004*। लेकिन इनका पालन न के बराबर है। ग्रामीणों ने कई बार शिकायतें कीं, लेकिन कार्रवाई के नाम पर खानापूर्ति होती है। एक सामाजिक कार्यकर्ता ने कहा, "कानून तो हैं, लेकिन लागू कौन करेगा? जब पुलिस ही तस्करों के साथ है, तो हम किससे उम्मीद करें?"


आंदोलन की सुगबुगाहट


प्रेमनगर और आसपास के गांवों में तस्करी के खिलाफ आंदोलन की सुगबुगाहट शुरू हो चुकी है। सामाजिक संगठन इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाने की तैयारी में हैं। ग्रामीणों की मांग है कि तस्करों पर सख्त कार्रवाई हो, दोषी पुलिसकर्मियों को बेनकाब किया जाए, और इस धंधे पर रोक लगे। एक युवा कार्यकर्ता ने कहा, "अगर प्रशासन नहीं जागा, तो हम सड़कों पर उतरेंगे।"



 राजनीतिक विरोधाभास


स्थानीय विधायक और मुख्यमंत्री ने पशु तस्करी के खिलाफ सख्ती की बात कही है, लेकिन स्थानीय पुलिस और प्रशासन की निष्क्रियता उनकी मंशा पर पानी फेर रही है। ग्रामीणों का सवाल है कि जब शीर्ष स्तर पर सख्ती की बात हो रही है, तो स्थानीय स्तर पर तस्करी क्यों नहीं रुक रही?


 बेजुबानों का भविष्य अधर में


सूरजपुर के जंगलों में हर रात मवेशियों की चीखें गूंज रही हैं, लेकिन इन बेजुबानों की पुकार सुनने वाला कोई नहीं। यह केवल तस्करी की कहानी नहीं, बल्कि भ्रष्टाचार और सिस्टम की विफलता की दास्तान है। प्रशासन और पुलिस से सवाल है कि क्या इस काले कारोबार पर लगाम लगेगी? क्या ग्रामीणों की आस्था और आजीविका की रक्षा होगी?


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