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सूरजपुर में निजी स्कूल के छात्र का दबदबा, शासकीय स्कूलों की नाकामी पर सवाल

by Admin on 2025-05-10 12:41:34

सूरजपुर में निजी स्कूल के छात्र का दबदबा, शासकीय स्कूलों की नाकामी पर सवाल

Cp sahu 

सुरजपुर। सुरजपुर में एक बार फिर निजी स्कूल के छात्र ने बाजी मार ली है। निजी स्कूल के आयुष कुमार ने छत्तीसगढ़ माध्यमिक शिक्षा मंडल की 10वीं बोर्ड परीक्षा में 95.67 प्रतिशत अंकों के साथ जिला टॉपर बनकर न केवल अपने परिवार, बल्कि पूरे सूरजपुर का नाम रोशन किया है। आयुष की इस शानदार उपलब्धि के पीछे उनकी कड़ी मेहनत, नियमित अध्ययन और माता-पिता के साथ-साथ स्कूल के सहयोग को श्रेय जाता है। उनके पिता, जो शासकीय स्कूल में शिक्षक हैं, और माता, जो पटवारी के पद पर कार्यरत हैं, इस उपलब्धि पर गर्व महसूस कर रहे हैं। आयुष का यह प्रदर्शन हर उस युवा के लिए प्रेरणा है, जो मेहनत और लगन से अपने सपनों को साकार करना चाहता है।

लेकिन इस चमकती सफलता के बीच एक कड़वा सत्य भी सामने आता है, जो जिले के शिक्षा विभाग और शासकीय स्कूलों की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े करता है। करोड़ों रुपये के इंफ्रास्ट्रक्चर, फर्नीचर, स्मार्ट क्लास और तमाम सुविधाओं के बावजूद शासकीय स्कूलों के छात्र बोर्ड परीक्षाओं में निजी स्कूलों के सामने कहीं नहीं ठहरते। यह स्थिति न केवल चिंताजनक है, बल्कि शिक्षा विभाग के अधिकारियों और जिला शिक्षा अधिकारी की लापरवाही को उजागर करती है। 

प्रदेश के मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने शिक्षा के गिरते स्तर पर पहले ही नाराजगी जाहिर की थी, लेकिन जमीनी हकीकत में कोई सुधार नजर नहीं आता। शासकीय स्कूलों में प्रतिमाह लाखों रुपये की तनख्वाह पाने वाले शिक्षक, प्रिंसिपल, बीईओ और बीआरसी अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ रहे हैं। जिला शिक्षा अधिकारी की उदासीनता और भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारियों को खुली छूट ने स्थिति को और बदतर कर दिया है। आखिर क्यों शासकीय स्कूल, जो सरकारी संसाधनों से लैस हैं, निजी स्कूलों के सामने पिछड़ रहे हैं? यह सवाल हर उस अभिभावक और छात्र के मन में है, जो शिक्षा विभाग से बेहतर परिणाम की उम्मीद रखता है।

आयुष जैसे मेहनती छात्रों की सफलता निश्चित रूप से सराहनीय है, लेकिन यह शिक्षा विभाग के लिए एक जोरदार तमाचा भी है। जब तक जिला शिक्षा अधिकारी और विभाग के अधिकारी अपनी लापरवाही और भ्रष्टाचार पर लगाम नहीं लगाएंगे, तब तक शासकीय स्कूलों का स्तर सुधरने वाला नहीं है। शिक्षा विभाग को चाहिए कि वह इस मामले को गंभीरता से ले, लापरवाह शिक्षकों और अधिकारियों पर सख्त कार्रवाई करे, ताकि शासकीय स्कूल भी निजी स्कूलों की तरह उत्कृष्ट परिणाम दे सकें। आयुष की मेहनत और सफलता को सलाम, लेकिन शिक्षा विभाग की नाकामी पर सवाल उठना लाजमी है।

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