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हसदेव अरण्य का विनाश: बंदरों की हत्या, आदिवासियों का विस्थापन और पर्यावरणीय त्रासदी

by Admin on 2025-05-28 16:42:15

हसदेव अरण्य का विनाश: बंदरों की हत्या, आदिवासियों का विस्थापन और पर्यावरणीय त्रासदी

अडानी माइंस ने आधा दर्जन भगवान श्रीराम की सेना बंदरों की करी हत्या

हमर उत्थान सेवा समिति ने करी अफसरों पर अपराधिक प्रकरण दर्ज करने की मांग


सरगुजा, छत्तीसगढ़, 28 मई 2025।  मध्य भारत के फेफड़े कहे जाने वाले हसदेव अरण्य में पर्यावरणीय, सांस्कृतिक और मानवीय संकट गहराता जा रहा है। सरगुजा संभाग के इस जैव-विविधता से भरपूर जंगल को अडानी समूह द्वारा संचालित परसा ईस्ट केते बासेन (पीईकेबी) कोयला खदान के लिए बेरहमी से उजाड़ा जा रहा है। उदयपुर क्षेत्र के केते, परसा, बासेन और घाटबर्रा गांवों में ओपन कोल माइंस के विस्तार ने हरे-भरे जंगलों को तबाह कर दिया, जो भगवान हनुमान के प्रतीक लंगूरों सहित असंख्य वन्यजीवों का घर थे।  

25 मई 2025 को पेड़ों की कटाई के दौरान आधा दर्जन लंगूरों की दर्दनाक मौत ने स्थानीय ग्रामीणों को झकझोर दिया। हमर उत्थान सेवा समिति के अध्यक्ष चंद्र प्रकाश साहू ने इसे महज दुर्घटना नहीं, बल्कि सुनियोजित हत्या मानती है। समिति का आरोप है कि वन विभाग और अडानी माइंस के अधिकारियों की मौजूदगी में, बिना वन्यजीवों को सुरक्षित स्थानांतरित किए, पेड़ गिराए गए। यह हिंदू आस्था में भगवान श्रीराम की सेना के प्रतीक लंगूरों पर हमला है, जिस पर न तो किसी नेता ने शोक व्यक्त किया, न ही जवाबदेही तय की गई।  

हसदेव अरण्य, जो 1,70,000 हेक्टेयर में फैला है, 82 प्रकार के पक्षियों, दुर्लभ तितलियों और 167 प्रकार की वनस्पतियों का ठिकाना है, जिनमें 18 लुप्तप्राय हैं। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, पीईकेबी खदान के लिए अब तक 94,460 पेड़ काटे जा चुके हैं, और 2,73,757 और पेड़ काटे जाने की योजना है। लेकिन स्थानीय कार्यकर्ताओं का दावा है कि वास्तविक कटाई इससे कहीं अधिक है। अडानी माइंस पर आंकड़ों को कम दिखाने और पारदर्शिता की कमी का आरोप है। 2022 में 43 हेक्टेयर और 2023 में 91 हेक्टेयर जंगल की कटाई के बाद, दिसंबर 2023 में भारी पुलिस सुरक्षा में हजारों पेड़ और काटे गए। यह विनाश हसदेव नदी को प्रदूषित कर रहा है और मानव-हाथी संघर्ष को बढ़ा रहा है।  


हसदेव के जंगल गोंड, लोहार, उरांव और पहाड़ी कोरवा जैसे आदिवासी समुदायों की आजीविका का आधार हैं। खनन कार्यों ने इनकी रोजी-रोटी छीन ली है। रोजगार के वादे खोखले साबित हुए, और सैकड़ों आदिवासी परिवार विस्थापित हो चुके हैं, जबकि हजारों अन्य पर विस्थापन का खतरा मंडरा रहा है। ग्राम सभाओं की सहमति के बिना, फर्जी दस्तावेजों के आधार पर खनन को मंजूरी दी गई, जो संविधान की पांचवीं अनुसूची और वन अधिकार अधिनियम का उल्लंघन है।  


कुछ माह पूर्व, उदयपुर के लक्ष्मणगढ़ में एक मजदूर की पेड़ कटाई के दौरान डाल गिरने से मृत्यु हो गई। उसके परिवार को न सरकारी नौकरी मिली, न ही उचित सहायता। अडानी माइंस ने केवल मुआवजा देकर जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया। एक वर्ष बाद भी इस मामले में कोई जवाबदेही तय नहीं हुई।  

हमर उत्थान सेवा समिति ने अडानी माइंस, वन विभाग और प्रशासन के खिलाफ कड़ा रुख अपनाते हुए मांग की है कि लंगूरों और अन्य वन्यजीवों की हत्या के लिए वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत आपराधिक प्रकरण दर्ज हो। जंगल कटाई पर तत्काल रोक लगे और हसदेव को संरक्षित क्षेत्र घोषित किया जाए। लक्ष्मणगढ़ के मजदूर की मृत्यु के जिम्मेदार लोगों पर कार्रवाई हो और उसके परिवार को नौकरी व उचित मुआवजा मिले। ग्राम सभाओं की सहमति के बिना कोई खनन कार्य न हो। काटे गए पेड़ों की वास्तविक संख्या की स्वतंत्र जांच हो और हसदेव के जंगलों को मध्य भारत के फेफड़े के रूप में संरक्षित किया जाए।  


समिति ने ग्रामीणों, आदिवासियों, पर्यावरण प्रेमियों और हिंदू धर्म के अनुयायियों से अपील की है कि वे हसदेव अरण्य और हनुमान जी के प्रतीक लंगूरों की रक्षा के लिए एकजुट हों। यह आंदोलन जल, जंगल और जमीन को बचाने की नैतिक जिम्मेदारी है। समिति ने चेतावनी दी कि चुप्पी इस विनाश को और बढ़ावा देगी।  

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