by Admin on 2025-06-04 08:55:42
सूरजपुर। स्कूल शिक्षा विभाग इन दिनों बुलंद हौसलों के साथ एक तूफानी समुद्र में नाव खेने की तरह युक्तियुक्तकरण की प्रक्रिया को अंजाम देने में जुटा है। विभाग का मानना है कि यह नीति स्कूलों और शिक्षकों को व्यवस्थित करने के लिए बनाई गई है, लेकिन इसकी लहरों ने शिक्षकों के बीच विरोध की आंधी भी खड़ी कर दी है। इस आंधी की शुरुआत में ही शिक्षक संघों ने इस नीति पर सवालों की बौछार कर दी, जिसमें एक प्रमुख आरोप यह है कि यदि परिवीक्षा अवधि वाले शिक्षकों का ट्रांसफर हो सकता है, तो इनका अतिशेष क्यों नहीं हो सकता? सबके लिए समान नीति क्यों नहीं बनाई गई?
विभाग की कमान संभालने वाले लोगों ने नई शिक्षक भर्ती और पदस्थापना में शिक्षा के अधिकार अधिनियम की अनदेखी करते हुए मिडिल स्कूल में विषय बाध्यता को दरकिनार कर मनमाने ढंग से स्कूलों में शिक्षकों की नियुक्ति की। सेटअप और विषय क्रम का ध्यान नहीं रखा गया। जहां जरूरत अधिक नहीं थी, वहाँ नियुक्तियाँ दे दी गईं। इसके अलावा, अन्य शिक्षक संवर्ग में भी ऐसी ही नई नियुक्तियाँ की गईं। विभाग के इस कदम से कई स्कूलों में पहले से पदस्थ शिक्षक, जो सालों से सेवा दे रहे हैं, अतिशेष की श्रेणी में आ गए हैं। अब नई संस्था में जिले में वरिष्ठ होते हुए भी वे कनिष्ठ बनने वाले हैं।
शिक्षक संघों का कहना है कि नई भर्तियों ने कई स्कूलों में असंतुलन पैदा कर दिया है। एक ओर कुछ स्कूल शिक्षकों से भरे पड़े हैं, वहीं दूसरी ओर कई स्कूल अब भी एकल शिक्षक या शिक्षक-विहीन हैं। इस कमी को पूरा करने के लिए शिक्षक पदोन्नति की प्रक्रिया में इसका काफी हद तक पालन किया गया, लेकिन भर्ती प्रक्रिया में ऐसा नहीं हुआ। यही वजह है कि स्थिति उस बगीचे की तरह हो गई है, जहाँ एक कोने में फूलों की भीड़ है, तो दूसरा कोना बंजर पड़ा है। विभाग के इस कदम से अनुभवी शिक्षकों का मनोबल टूट रहा है, जो वर्षों से अपने स्कूलों को सींचते आए हैं। युक्तियुक्तकरण का उद्देश्य स्कूलों में संसाधनों का समान वितरण था, लेकिन शिक्षकों को लग रहा है कि यह प्रक्रिया उनके हितों को कुचल रही है।
विभाग का नियम साफ है कि परिवीक्षा अवधि में शिक्षकों का तीन साल तक स्थानांतरण नहीं हो सकता। इस नियम के तहत युक्तियुक्तकरण की नीति में नव नियुक्त शिक्षकों को छूट दी गई, लेकिन विरोधाभास यह है कि सरगुजा संभाग में कुछ नव नियुक्त शिक्षकों के स्थानांतरण को मंजूरी भी दे दी गई। हाल ही में रायपुर से जारी आदेश में डीएड किए हुए शिक्षकों को पदस्थापना के बाद संशोधन करते हुए नए सुविधाजनक स्कूलों में ट्रांसफर किया गया और इसे संशोधन का नाम दे दिया गया। इसके अलावा, कई नव नियुक्त शिक्षकों को सरगुजा से हटाकर बिलासपुर संभाग में प्रतिनियुक्ति तक कर दी गई। अब संघ सवाल पूछ रहा है कि जब कुछ शिक्षकों को नियमों में छूट दी जा सकती है, तो सभी के लिए समान नीति क्यों नहीं बनाई गई?
शिक्षक संघों और विभाग के बीच सवाल-जवाब का यह दौर पहली बार इतने खुले रूप में सामने आया है। अब परिस्थितियाँ कुछ ऐसी हैं कि विभाग कई नई और पुरानी उलझनों को सुलझाने के लिए जवाब तलाश रहा है, ठीक वैसे ही जैसे कोई नाविक तूफान में दिशा खोजने की कोशिश करता है। आरोप लग रहे हैं कि विभाग ने इस युक्तियुक्तकरण की नीति को सबको साथ लेकर संतुलित ढंग से लागू नहीं किया। इस वजह से यह प्रक्रिया सुधार की बजाय और अधिक असंतोष का कारण बन गई है।
उधर, सूरजपुर जिला शिक्षा अधिकारी भारती वर्मा डीपीआई के निर्देशों को दरकिनार करते हुए शिक्षकों की काउंसलिंग में गड़बड़ियाँ करती दिखाई दे रही हैं। जिले के ई संवर्ग में 78 अधिशेष शिक्षक निकले हैं, जिनके लिए सिर्फ 9 स्कूलों का चयन किया गया है। शिक्षक भर्ती और पदोन्नति की वजह से मिडिल स्कूल जिले में भरे पड़े हैं। ऐसी गंभीर लापरवाही सामने आ रही है कि मिडिल स्कूल के रिक्त पदों की सूची में निचले क्रम वाले शिक्षकों को पदस्थापना दे दी गई है, जिससे बाकी 69 ई संवर्ग के मिडिल स्कूल शिक्षकों को अब संभाग स्तर पर पदस्थापना के लिए इंतजार करना होगा।
अब बड़ा सवाल यह है कि स्कूल शिक्षा विभाग इस तूफान को शांत कर एक समान और पारदर्शी नीति लाने की बात कर रहा था, क्या वह हो रहा है? विभाग के संचालक ने पारदर्शिता और निष्पक्षता के बड़े दावे किए थे। ये दावे कितने खोखले और कितने ठोस हैं, यह भविष्य में तय होगा, लेकिन अभी विरोध की लहरें और ऊँची उठ रही हैं। शिक्षकों के सवाल अभी हवा में उड़ रहे हैं, जो कई अनियमितताओं की ओर इशारा भी कर रहे हैं। अब इनके जवाब कौन देगा?